विद्यालय पत्रिका सांगरी दर्पण पर आपका स्वागत है। आप यहां तक आए हैं तो कृपया अपनी राय से जरूर अवगत करवायें। जो जी को लगता हो कहें मगर भाषा के न्यूनतम आदर्शों का ख्याल रखें। हमने टिप्पणी के लिए सभी विकल्प खुले रखें है अनाम की स्थिति में अाप अपना नाम और स्थान जरूर लिखें । आपके स्नेहयुक्त सुझाव और टिप्पणीयां हमारा मार्गदर्शन करेंगे। कृपया टिप्पणी में मर्यादित हो इसका ध्यान रखे। यदि आप इस विद्यालय के विद्यार्थी रहें है तो SANGRIANS को जरूर देखें और अपना विवरण प्रेषित करें । आपका पुन: आभार।
जिनके हाथ ही पात्र है भिक्षाटन से प्राप्त अन्न का निस्वादी भोजन करते है विस्तीर्ण चारों दिशाएं ही जिनके वस्त्र है पृथ्वी पर जो शयन करते है अन्तकरण की शुद्धता से जो संतुष्ट हुआ करते है और देने भावों को त्याग कर जन्मजात कर्मों को नष्ट करते है ऐसे ही मनुष्य धन्य है!
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