शिक्षा
का जीवन से गहरा सम्बन्ध है। जीवन का आधार ही शिक्षा है जिस व्यक्ति को जैसी शिक्षा दी जाती है वैसा
ही उसके जीवन का निर्माण होता है धार्मिक शिक्षा से धर्म और भौतिक शिक्षा से भौतिक
जीवन का । अतः श्रेष्ठ शिक्षा को ही जीवन में उतम माना गया है। हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रीय
शिक्षा नीति के संकल्प को आत्मसात करते हुए शिक्षा में गुणवता व बच्चों के
सर्वागीण विकास के लिए प्रारंभिक शिक्षा में योग एवं संस्कृति विषय को लागू किया
गया। जो सरकार का शिक्षा के क्षेत्र में किया गया सुन्दर प्रयास हैं
वास्तव
में मुझे योग व संस्कृति का आंशिक ज्ञान तब होने लगा जब मैंने इस विषय का अध्यापन कार्य शुरू किया।
भाषा अध्यापक होने के साथ साथ मुझे इस विषय को पढ़ाने का गौरव प्राप्त हुआ।
यदि हम पाश्चात्य संस्कृति का अंधा अनुकरण छोड़ दे केवल अच्छी बाते ही अपनाये तो संदेह नहीं कि
भारत पुनः विश्व गुरू कहलाऐगा। संस्कृति का शाब्दिक अर्थ है संस्कार करना ।
संस्कृति शब्द संस्कृत भाषा के दो शब्दों के मेल से बना है है सम+कृ अर्थात
सुधारना परिष्कृत करना । मानव के दोने पक्षों
आध्यात्मिक और लौकिक पक्षों के
सुधारना। इन पक्षों में मनुष्य का प्रत्येक
क्रिया क्लाप बोल चाल की भाषा व्यक्तिगत और सामाजिक व्यवहार शिष्टाचार जीवन
यापन के रंग ढंग भौतिक उपलब्धियां खान पान
वस्त्रांलकार आवास निवास साहित्य कला धर्म दर्शन आदि सभी का समावेश होता है।
भारतीय
संस्कृति में प्राचीन काल से ही योग की महिमा का वर्णन किया गया है। योग भारतीय
संस्कृति की समृद्ध और अमूल्य सम्पति है। योग शब्द युज् धातु से बना है इसका अर्थ
है जोड़ना अर्थात आत्मा को परमात्मा से जोड़ना। आध्यात्मिक शक्ति द्वारा ही हम
आत्मा से परमात्मा को जोड़ सकते है। माना जात है कि योग व ज्ञान सर्व प्रथम
योगमूर्ति योगीश्वर भगवान शिव से आरंभ
हुआ है जिन्होने लगभग 87 हजार दिव्य वर्षेा तक समाधि लगाई थी । श्रीमद्भगवद गीता में श्री
कृष्ण ने अर्जुन को योग का उपदेश दिया था योगः कर्मसु कौषलम् अर्थात योग जीवन जीने के लिए कार्यों
में कुशलता प्रदान करता है। इस विषय पर ग्रन्थ लिखे गए है हिरण्यगर्भ सनकादि योगीश्वर
महार्षि मार्कण्डेय एवं वसिष्ठ आदि दिव्य विभूतियों ने योग को और सरल करके
सामान्य लोगों को आकर्षित किया।
योग
मात्र शरीर को विभिन्न स्थितियों में मोड़ना अथवा आसन करना ही नहीं है योग के आठ
अंग है हमें उन सभी का पालन करना चाहिए। पहला अंग यम हैं यम के पांच घटक है सत्य
अंहिंसा अस्तेय ब्रहमचर्य और अपरिग्रह। विद्यार्थियों को इनका विशेष महत्व बताया गया ताकि जीवन सर्वोपरि बन सके।
दूसरे अंग में शौच संतोष तप स्वाध्याय और
ईश्वर प्रणिधान नियम आते है। तीसरे अंग आसन है । जिसका अभिप्राय शरीर को विभिन्न
स्थितियों में मोड़ना इससे शक्ति का संचार होता है और चेहरे पर कांती आती है हमारे
शरीर में लचीलापन आता है।
चौथा
अंग है प्राणायाम जिसका अर्थ है प्राण वायु को गति देना ताकि शरीर में शुद्ध वायु
का संचार हो सकें । ये अंग स्वस्थ जीवन की ओर अग्रसर करता हैं ं । पांचवा अंग है
अंग प्रत्याहार । इन्द्रियों को विषय वासना से रोकना ही प्रत्याहार है। छठा अंग है
धारण । जिसका अर्थ है चित यानी मन को सकारात्मक विचारों पर केन्द्रित करना। सातवां
अंग है ध्यान योग इसे योग का मुख्य और महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। ध्यान से
अभिप्राय है एकाग्रता जिसके माध्यम से मानव जीवन परिवर्तन में सम्भव हो पाता है। आठवां अंग है समाधि जिसका
अर्थ है चित ध्यान करते करते भगवत स्वरूप में पूर्ण रूपेण लीन हो जाना लीनता की
अवस्था को ही समाधि कहा जाता है।
भारतीय
संस्कृति के अध्ययन से और योग को जीवन में अपनाने से ही मानव जीवन का भला सम्भव
है। वस्तुतः यही सफलता का मार्ग है।
विवेक
शर्मा
भाषा
अध्यापक
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